‘गुल’ राकेश की कविताओं में जैसे एक कोमल छुअन का एहसास है। मानवीय रिश्तों की संवेदनाओं को वे बेहद करीब से स्पर्श करते हुए बिंब बुनते हैं। नैरेटिव में सरपट भागने की बजाय वे ठहरकर ऑब्ज़र्व करते हुए शब्द-बिंब उकेरते हैं।
— स.सहाय रंजीत
मैनेजिंग एडिटर - इंडिया टुडे
माँ के होंठ, एक ऐसे रचनाकार की कृति है जो जिगर के ख़ून को स्याही की जगह इस्तेमाल करता है। राकेश की कविता का स्वर हृदय को छूता भी है और धकेलता भी । मखमल में लिपटे बारूद जैसे शब्दों वाली यह कविताएं, हिंदी साहित्य का एक प्रशंसनीय प्रयोग हैं।
— संजीव पुरी
लेखक, अभिनेता, निर्देशक - हिन्दी सिनेमा
‘गुल’ राकेश की कविताओं में शब्दों की सादगी, जज़्बात की मासूमियत और उनका बहाव ऐसा है कि आप अनायास ही कविता के सफ़र पर उसके साथ हो लेते हैं क्योंकि वो आपको बहुत अपना सा लगता है।ये खूबी बहुत कम कवियों में मिलती है और राकेश पर कुदरत मेहरबान है।
— वीना होरा
नाटक अभिनेत्री - ऑल इंडिया रेडियो
‘गुल’ राकेश (राकेश गुलाटी ), दिल्ली के कवि समाज में जाना-माना नाम हैं। कई वर्षों से बहुत सी साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। ‘छन्द-अन्न’, ‘अतरंगी रंग प्रीत के’ जैसे रचना संग्रहों में प्रकाशित इनकी कविताएँ काफ़ी पसंद की गयीं। वर्ष २०२२ में ऑल इंडिया रेडियो पर इनका साप्ताहिक प्रोग्राम ‘क़लम का दरवेश ‘गुल’ राकेश’ कई महीने तक लगातार प्रसारित हुआ और श्रोताओं का पसंदीदा कार्यक्रम बना। अभी हाल ही में ‘एशियन लिटरेरी सोसायटी’ द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया। आजकल अपने परिवार के साथ गुरुग्राम में निवास करते हैं।
rakeshgulati65@gmail.com और #9999483824 पर ‘गुल’ राकेश से संपर्क किया जा सकता है।